दिनेश साहू की रिपोर्ट चारामा- इस वर्ष समूचे छत्तीसगढ़ में पोला-पिठौरा का पर्व बड़े ही धूमधाम से सोमवार 2 सितंबर को भाद्रपद मास की अमावस्या तिथी को मनाया जा रहा है । इस पर्व को लेकर छत्तीसगढ़िया लोगों के बीच में भारी उत्साह है । पोला पर्व के आगमन के सप्ताह भर पहले से बाजारों में कुम्हारों के द्वारा मिट्टी से निर्मित किए हुए खिलौने बर्तन व विशेष कर के रंग बिरंगे बैल बिकने सजकर तैयार है ।
छत्तीसगढ़ में खेती किसानी के कार्यों मे बैलों का विशेष योगदान होता है । इसलिए इस पर्व पर बैलों की विशेष रूप से पूजा-अर्चना की जाती है । पोला का पर्व कृषकों व खेतिहर श्रमिकों के लिए समर्पित है । हिंदूस्तान एक कृषि प्रधान देश है । वहीं कृषि के क्षेत्र में प्रारंभ से ही बैल अभिन्न अंग माने जाते है ।पोला पर्व को लेकर ऐसी मान्यता है कि इसी दिन से किसानों के द्वारा लगाए गए धान के पौधों की बालियों में दूध भरता है और अन्न माता गर्भधारण करती है । धान के फसल की अच्छी पैदावार होने की खुशहाली में किसान इस पर्व को बड़े ही हर्सोल्लाष के साथ मनाते हैं । इस दिन सभी के घरों में पकवान बनाए जाते हैं । छोटी कन्याओं के खेलने के लिए मिट्टी के बर्तन और लड़कों के लिए मिट्टी या फिर लकड़ी के बैल जैसे खिलौने खरीदे जाते हैं । जिसे पाकर बच्चे बहुत उत्साहित होते हैं ।
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