रोहित वर्मा खरोरा :- छत्तीसगढ़ के ग्रामीण अंचल के साथ-साथ शहरी क्षेत्र में भी शीतला मंदिरों में माता पहुंचनी का कार्यक्रम बड़े उत्साह के साथ आयोजन किया गया।
आस्था विश्वास समर्पण का महापर्व माता पहुंचनी का पर्व हैं । आज भी सदियों से चली आ रही परम्परा जीवित हैं माता पहुंचनी मनाने की परम्परा अभी से नही पुरातन काल से चली आ रही है। गॉव के आराध्य देवी मां शीतला के दरबार में प्रतिवर्ष की भांति 8 जुलाई दिन सोमवार को पूरे आस्था विश्वास एवं धार्मिक वातावरण के बीच स्वस्थ और निरोगी रहने की कामना लिए श्रद्धालु मां शीतला के दरबार में पहुंचे।
दोपहर बाद भक्तों का अपार जनसमूह मंदिर प्रांगण में देखने को मिला। सदियों से चली आ रही इस परम्परा के बारे में मंदिर के पुजारी ने बताया यह परम्परा हमारे पुरखों की देन है। गांव में किसी प्रकार के अनहोनी से बचने के लिए मां शीतला के दरबार में भक्तगण आते है। माता पहुंचनी के दिन विशेष तैयारी की जाती है इस दिन नीम के पत्ते हल्दी व तेल को आपस में मिलकर भक्तों के सिर के ऊपर छिड़काव किया जाता है।
माताएं अपने साथ घर से थाली में नारियल, हल्दी, तेल चांवल, दाल थोड़ी थोड़ी मात्रा में लेकर आती है और प्रसाद स्वरूप ठंडई के रूप में अपने घर ले जाकर परिवार के सभी सदस्यों के ऊपर छिड़काव करती है माना जाता है कि ऐसा करने से परिवार में किसी प्रकार के बीमारियों का प्रकोप नहीं होता।
बताया जाता है कि पुराने समय में माता पहुंचनी के दिन बली प्रथा का प्रचलन था। जो समय के साथ धीरे धीरे समाप्त हो गया अब माता के चरणों में नारियल चढ़ा कर स्वस्थ और निरोगी रहने की मन्नत मांगी जाती हैं ।
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