विलुप्त हो रहीं जड़ी बूटियों की प्रजातियों के संरक्षण में जुटे चिकिसक,योगाचार्य व ग्रामीण......छत्तीसगढ़ सामाचार TV

*औषधीय पौधों का संरक्षण और सतत उपयोग: समस्याएं, प्रगति और संभावनाएं*

*पेड़ों की अंधाधुंध कटाई में विलुप्त हो रही औषधीय वृक्ष की प्रजातियां, पर्यावरण के साथ स्वास्थ्य पर गहराया संकट*

RKK दुर्गुकोंदल :-  कांकेर जिले के सुदूर वनांचल ग्राम कोदापाखा क्षेत्र में जड़ी-बूटी और अन्य वन औषधियों की भरमार है। लेकिन इनका संरक्षण व संवर्धन नहीं होने की वजह से ये गुणकारी पेड़ अब विलुप्त होने के कगार पर है। गांवों की बसावट और सड़कों के विस्तार के कारण पिछले एक दशक में पेड़ों की अंधाधुंध कटाई के चलते औषधीय वृक्ष की 20 से ज्यादा दुर्लभ प्रजातियां विलुप्त होने के कगार पर है। कुछ बचे भी हैं तो जरूरत है उनकी संरक्षण की, ताकि लोग इनके उपयोग से छोटी-बड़ी बीमारियों में स्वास्थ्य लाभ ले सकें। 20-22 साल पहले आसपास के घने जंगलों में आंवला,बहेड़ा,खम्हार, खैर, पलाश, हर्रा, सतावर, कोचिला, अर्जुन सहित अनेक औषधि पेड़-पौधों की भरमार थी। इनमें हर औषधीय पौधे की अपनी-अपनी अलग विशेषता है।जानकारों के अनुसार 30 से भी अधिक वन औषधी के पेड़-पौधों की पहचान क्षेत्र के लोगों को है। इसके अलावा कई और पेड़ पौधे भी हैं जो औषधी हो सकते हैं। अधिकतर ग्रामीण इसका प्रयोग भी करते हैं लेकिन पहचानते नहीं है। जरूरत पड़ने पर चिकित्सक या वैद्य इसे ले जाते हैं। ऐसे मूल्यवान औषधीय वृक्ष संरक्षण के अभाव में विलुप्त हो रहे हैं। कुछ जगहों पर गिने-चुने पेड़ ही रह गए हैं। इसके संरक्षण के लिए न तो समाज के लोगों ने पहल की और न ही प्रशासन ने।
        शासकीय आयुर्वेद महाविद्यालय रायपुर के अंतिम वर्ष के छात्र डॉ विनोद कुमार निषाद व छात्रा डॉ के.वाणी द्वारा अनुसंधान कार्य जारी है,उनका कहना है कि क्षेत्र में जैव विविधता ज्यादा मौजूद है। यहां पर विभिन्न प्रकार की वृक्ष प्रजातियां विलुप्त होने के कगार पर हैं। अभी बायो डाइवर्सिटी वाले पेड़ फल दे रहे हैं। इसी समय बीज गिरते हैं, ऐसे मेंं इन्हें एकत्रित कर बारिश के समय इन्हें फैलाया जाए। जिससे औषधीय व अन्य प्रजातियों को विलुप्त होने से रोका जा सकता है।दुर्लभ प्रकार के पेड़ जो बचे हैं, उन्हें इस बसंत में संरक्षित करने का बड़ा मौका है। क्योंकि बंसत में ही फल खिलते हैं और फल बनते हैं और बीज संरक्षित हो सकते हैं। इन पेड़ो के बीज एकत्रित कर नर्सरी तैयार कर इनका दायरा बढ़ा सकते हैं और इन्हें लुप्त होने से बचा सकते हैं।
कोदापाखा के आयुर्वेद चिकित्सक डॉ.के वेणुगोपाल का कहना है कि खम्हार, खैर, पलाश, हर्रा, बहेरा, सतावर, कोचिला, अर्जुन, पाटना, खीरी, सपाटू, आंवला, अमलताश, केंत, सागवान आदि के पेड़ प्रचुर मात्रा में थे। यह सब विलुप्त हो गए हैं या विलुप्त होने के कगार पर हैं। जलाऊ लकड़ी, इमारती लकड़ी, फर्नीचर के व्यापारियों ने अवैध रूप से दोहन भी कारण है।
संजय वस्त्रकार योगाचार्य ने बताया कि वृक्षों की कटाई से प्राकृतिक परिवेश में हरियाली, हवा युक्त छाया में कमी होना, आंधी और बाढ़ का खतरा,व इससे भूमिगत जल स्तर घटता है। वातावरण में गर्मी की लगातार बढ़ोतरी यह सब वृक्ष के नष्ट होने के कारण हो रहा है। वनस्पतियों की प्रजातियां विलुप्त होने के कगार पर हैं।घने जंगलों की कटाई से औषधीय पौधे की प्रजातियां अति संकटग्रस्त स्थिति में पहुंच गई हैं।
       कोदापाखा क्षेत्र में ऐसे पौधों की पहचान के लिए डॉक्टर के वाणी, डॉ विनोद कुमार निषाद के साथ देवलाल नरेटी जनपद सदस्य सीमा कावड़े, सविता कोमरे, जगदीश मरकाम, डॉक्टर के वेणुगोपाल, संजय वस्त्रकार शिव प्रसाद बघेल, मनऊ राम नरेटी, शिवप्रसाद नरेटी, हरिशंकर, नाथू राम दुग्गा, विश्राम नरेटी, झाडू राम प्रयासरत है।आयुर्वेद औषधालय कोदापाखा औषधिय वनस्पतियों के संरक्षण हेतु बगीचे का निर्माण कर पौधा संरक्षण में भूमिका निभा रहा है। इस पहल को देखकर क्षेत्र के अधिकारी जनप्रतिनिधी खुले कंठ से तारीफ कर रहे है। इनमे प्रमुख उमाकान्त जायसवाल तहसीलदार, जनपद अध्यक्ष संतो दुग्गा, सरपंच गुलाब बघेल, अनिता नरेटी, भगवान सिंह गावड़े आदि शामिल है।

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