RKK की रिपोर्ट दुर्गुकोंदल :- छत्तीसगढ़ का पारंपरिक अन्न दान का महापर्व छेरछेरा गुरुवार को धूमधाम से दुर्गुकोंदल अंचल में मनाया गया। छत्तीसगढ़ एक ऐसा राज्य है जहाँ बहुत ही उत्सव के साथ हर साल सभी त्योहारों को मनाया जाता है।छत्तीसगढ़ में छेरछेरा त्यौहार छोटे से लेकर बड़े तक सभी एक दुसरे के घर जाकर छेरछेरा मांगने जाते है। छत्तीसगढ़ में यह पर्व नई फसल के खलिहान से घर आ जाने के बाद मनाया जाता है। इस दौरान लोग घर-घर जाकर अन्न का दान माँगते हैं। वहीं गाँव के युवक घर-घर जाकर डंडा नृत्य करते हैं।संजय वस्त्रकार ब्याख्याता ने बताया कि लोक परंपरा के अनुसार पौष महीने की पूर्णिमा को प्रतिवर्ष छेरछेरा का त्योहार मनाया जाता है। इस दिन सुबह से ही बच्चे, युवक व युवतियाँ हाथ में टोकरी, सजी हुई छड़ी, बोरी आदि लेकर घर-घर छेरछेरा माँगते हैं। वहीं युवकों की टोलियाँ डंडा नृत्य कर घर-घर पहुँचती हैं। धान मिंसाई हो जाने के चलते गाँव में घर-घर धान का भंडार होता है, जिसके चलते लोग छेर छेरा माँगने वालों को दान करते हैं।इन्हें हर घर से धान, चावल व नकद राशि मिलती है। इस त्योहार के दस दिन पहले ही डंडा नृत्य करने वाले लोग आसपास के गाँवों में नृत्य करने जाते हैं। वहाँ उन्हें बड़ी मात्रा में धान व नगद रुपए मिल जाते हैं। इस त्योहार के दिन कामकाज पूरी तरह बंद रहता है। इस दिन लोग प्रायः गाँव छोड़कर बाहर नहीं जाते।
आज बच्चों की छोटी टीम, युवक युवतियों की टीम द्वारा द्वार-द्वार पर 'छेरछेरा, कोठी के धान ल हेरहेरा' की गूँज थी।पौष पूर्णिमा के अवसर पर मनाए जाने वाले इस पर्व के लिए लोगों में काफी उत्साह है। गौरतलब है कि इस पर्व में अन्न दान की परंपरा का निर्वहन किया जाता है।रामायण मंडलियां भी पर्व मनाने में पीछे नही रही और पंथी नृत्य करने वाले दल भी छेरछेरा का आनंद लेने ग्राम-ग्राम,घर- घर दस्तक दिये।यह उत्सव कृषि प्रधान संस्कृति में दानशीलता की परंपरा को याद दिलाता है। उत्सवधर्मिता से जुड़ा छत्तीसगढ़ का मानस लोकपर्व के माध्यम से सामाजिक समरसता को सुदृढ़ करने के लिए आदिकाल से संकल्पित रहा है।
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