भानुप्रतापपुर में कमरछठ पर्व पर सगरी बनाकर की शिव-पार्वती की पूजा.......छत्तीसगढ़ समाचार TV

छत्तीसगढ़ समाचार TV भानुप्रतापपुर- संतान की लंबी उम्र के लिए मंगलवार को माताओं ने कमरछठ का व्रत रखा। कमर छठ की तैयारी करने सुबह से ही बाजार में खासी भीड़ रही। छह तरह की भाजियां, पसहर चावल, काशी के फूल, महुआ के पत्ते, धान की लाई सहित पूजा की कई छोटी-बड़ी पूजन की सामाग्री भगवान शिव को अर्पित कर संतान के दीर्घायु जीवन की कामना की। कमरछठ की पूजा के लिए महिलाओं ने गली-मोह्ल्ले में मिलकर प्रतीकस्वरूप दो सगरी के साथ मिट्टी की नाव बनाई और फूल-पत्तों से सगरी को सजाकर वहां महादेव व पार्वती की पूजा की। दिनभर निर्जला रहकर शाम को सूर्य डूबने के बाद व्रत खोले। नगर के कर्मचारी कालोनी नयापारा में कमरछठ पूजा किया गया। जिसमें भावना , रजनी, सती ठाकुर, कल्पना चौहान, राधा , अंजू जैन,ज्योति साहू,मनीषा सिन्हा समेत बड़ी संख्या में माताएं शामिल हुई। इसी तरह भानुप्रतापपुर के वार्ड क्रमांक 2 और बसंत नगर में भी माताओं द्वारा पूजा अर्चना विधि विधान से किया गया।
👉बलराम के जन्मदिवस का त्यौहार कमरछठ दुर्गा मंदिर में मनाया गया
भानुप्रतापपुर के नयापारा स्थित दुर्गा मंदिर में कमरछट का त्यौहार पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। मंदिर परिसर मे सगरी बनाकर महिलाओं ने विधि विधान से हलषष्टी की पूजा की। आज सुबह से ही मंदिर में चहल पहल थी और सभी महिलाओं ने एक दिन का व्रत रखकर पूजा की। भानुप्रतापपुर नगर में दुर्गा मंदिर में सभी त्योहारों को पूरे उत्साह के साथ मनाया जाता है। सभी महिलाओं ने अपने संतान की सुख समृद्वि की कामना करके कतरछट का उपवास रखा और पूजा की। भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को हल षष्ठी के नाम से जाना जाता है. इस दिन महिलाएं संतान की दीर्घायु और कुशलता की कामना के लिए व्रत रखती हैं.हल षष्ठी व्रत भगवान कृष्ण के बड़े भाई बलराम को समर्पित है. धार्मिक मान्यता है कि इस दिन भगवान बलराम का जन्म हुआ था. नववाहिता ये व्रत संतान सुख के लिए करती हैं धर्म ग्रंथों के अनुसार बलराम जी का मुख्य शस्त्र हल और मूसल है इसलिए उन्हें हलधर भी कहा जाता है, उन्हीं के नाम पर इस पावन पर्व का नाम हल षष्ठी पड़ा है. इसे हलधर भी कहा जाता है।
इस दिन खेती में उपयोग होने वाले उपकरणों की पूजा की जाती है. महिलाएं अपने बच्चों की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए यह व्रत रखती हैं. मान्यता है कि इस व्रत को करने से संतान के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं. हलषष्ठी के दिन माताओं को महुआ की दातुन और महुआ खाने का विधान हैहल षष्ठी के दिन महिलाएं एक गड्ढा बनाकर उसे गोबर से लीप कर तालाब का रूप देती हैं. इस तालाब में झरबेरी और पलाश की एक शाखा बांधकर उसमें गाड़ दिया जाता है. भगवान गणेश और माता पार्वती की पूजा की पूजा कर छठ माता की पूजा की जाती है. पूजा के समय 7 तरह का अनाज चढ़ाया जाता है. इस व्रत में हल से जोत कर उगाए हुए अन्न को नहीं खाया जाता है. पूजा के बाद भैंस के दूध से बने मक्खन से हवन किया जाता है. रात्रि में चंद्र दर्शन के बाद व्रत का पारण करते हैं. आज इस अवसर पर भानुप्रतापपुर नगर के महिलाओं नें उपस्थित होकर पूजा की।
बिना हल चली चीजों का महत्व
आपको बता दे बिहार में जिस तरह छठ मईया की पूजा होती है उसी तरह छत्तीसगढ़ में कमरछठ का महत्व है जो संतान प्राप्ति और संतान की लंबी उम्र के लिए किया जाता है। कमरछठ में भाजियों का अपना महत्व है। इस व्रत में छह तरह की ऐसी भाजियों का उपयोग किया जाता है। जिसमें हल का उपयोग ना किया हो। बाजार में भी लोग अलग-अलग तरह की छह भाजियां लेकर पहुंंचे। जिसमें चरोटा भाजी, खट्टा भाजी, चेंच भाजी, मुनगा भाजी, कुम्हड़ा भाजी, लाल भाजी, चौलाई भाजी शामिल है।

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